प्राचीन शहर मोहनजोदाड़ो का रहस्य, Amazing Facts About Mohenjo Daro: मोहनजोदाड़ो ये नगर सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख शहर माना जाता है। "मोहनजोदाड़ो" यह सिंधी भाषा का शब्द है और इसका अर्थ "मुर्दो का टीला" ऐसा होता है, लेकिन मोहनजोदाड़ो ये इस नगर का असली नाम नहीं है क्यूँ के इस नगर का असली नाम आज तक पता नहीं चला है।
मोहनजोदाड़ो ये नाम खोजकर्ता और इतिहासकारो ने कई आधार पर रखा है। परन्तु यह दुनिया का सबसे पुराना और विकसित शहर माना जाता है। और तो और यह सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे आधुनिक और विकसित शहर था, मोहनजोदाड़ो शहर के अवशेष सिंधु नदी के किनारे सक्खर ज़िले में मिले है।
मोहनजोदाड़ो शब्द का सही उच्चारण है "मुअन जो दड़ो" होता है। इस नगर की खोज "राखालदास बनर्जी" ने 1922 में की थी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ था। यहाँ पर खुदाई में बड़ी मात्रा में घर, इमारतें, धातुओं की मूर्तियां, मुद्राये और मुहरें इत्यादि वस्तुये मिली है।
माना जाता है कि यह आधुनिक शहर 200 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था, और ये सभ्यता लगभग 5000 साल पुरानी हो सकती है और इस शहर की लोकसंख्या 40 हजार से भी जादा हो सकती है, और नगर की इमारतों में जल कुंड भी है जिसमे वाटरप्रूफ इटो का उपयोग किया गया है।
मोहनजोदाड़ो की सड़कें और गलियों आज भी सही तरीके से सलामत है, इस पर आज भी घूमा जा सकता है। इस शहर की दीवारों की स्थिति आज भी मजबूत हैं, इसे भारत का सबसे पुराना लैंडस्केप भी कहा गया है और उनकी इस्तेमाल कि जाने वाली लिपि आज भी समझ से परे है और ये सभ्यता की कोनसी भाषा थी ये भी एक रहस्य है।
मोहनजोदड़ो कला और संस्कृति - Mohenjo Daro Art and Culture
सिंधु घाटी के प्रमुख नगर मोहनजोदाड़ो के लोगों में कला का महत्व बहुत था। वास्तुकला या नगर-नियोजन का भी उन्हें ग्यान था और धातु और पत्थर की मूर्तियां बनाना, खास प्रकार के बर्तन बनाना और उन पर कुछ चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की चित्रकला दिखाना और मुहरे, बारिकिसे बनाई गई आकृतियाँ, खिलौने, आभूषण इन सब में उनको महारत हासिल हुई थी।
इस सभ्यता के लोगो के पास गणित का भी खास ग्यान था और खुदाई में मिट्टी के कंगन, मिट्टी की बैलगाड़ी, पत्थरों के औजार, तांबे और कांस्य के बर्तन, ताम्बे का आईना, चोपद खेल की गोटिया और नापतोल करने के लिए उपयोग किये जाने वाले पत्थर इत्यादी वस्तु ये मिली है, माना जाता है की यहाँ के लोग दीवाली भी मनाते थे क्यूँ की खोजकर्तावो को वहा एक मिट्टी की मूर्ति मिली उस मूर्ति के दोनों ओर दीप जलते हुए दिखाई देते है इनके अनुसार उस समय भी दीवाली मनाई जाती होंगी।
इन सभ्यता के लोग शतरंग भी खेलते थे इसका भी प्रमाण मिला है। और यहाँ पर खुदाई में एक प्रसिद्ध “नर्तकी” की मूर्ति मिली है और यह मूर्ति आपको आज भी दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में दिखाई देंगी, इसका मतलब इन सभ्यतावो के लोग नृत्य और संगीत में भी रूचि रखते थे और इसके प्रमाण भी खोजकर्तावो को मिले है।
मोहनजोदाड़ो वास्तुकला और नगर निर्माण - Architecture & City Construction
मोहनजोदाड़ो की देव मार्ग नामक एक गली में करीब 40 फुट लंबा और 25 फुट चौड़ा प्रसिद्ध जल कुंड है, इसकी गहराई लगभग 7.5 फुट है। इस कुंड को बहुत ही रचनात्मक तरीके से बनाया गया है, क्यों के इसमें किसी का द्वार दूसरे द्वार सामने नहीं खुलता। कुंड में उत्तर और दक्षिण दिशा से सीढ़ियां उतरती हैं।
कुंड के तीन बाजुओ मे साधुओं के कक्ष बने हुए हैं, उत्तर में आठ स्नानघर है। इसमे इस्तेमाल की गई इटे बहुत ही पक्की हैं, और वाटर-प्रूफ इटो का इस्तेमाल किया है। इस कुंड में अशुद्ध पानी ना आए इसके लिए भी उन्होंने खास विचार किया था , इसके लिए दीवारों में चुने का और डामर का इस्तेमाल किया था।
कुंड में पानी के लिये दो कुएँ बनाये थे और कुंड से पुराना पानी बाहर निकालने के लिए पक्की नालियाँ भी बनाई गयी थी, और उन नालियों को पक्की ईंटो से ढका गया था। यहाके सभ्यता के लोग नगरो और घरों के निर्माण के लिए ग्रिड पद्धति का उपयोग करते थे इसका सबूत हमें उनके बड़े बड़े घर , बड़ी सड़के और बहुत सारे कुए को देख कर मिलता है।
इस नगर की नालिया भी पक्की होती थी और ढक कर रहती थी, मोहनजोदाड़ो की सड़के और गलिया आज भी सही स्थिति में है, इस पर आज भी घूमा जा सकता है। इस शहर की दीवारों की स्थिति आज भी काफी मजबूत हैं, इसे भारत का सबसे पुराना लैंडस्केप भी कहा जाता है।
मोहनजोदाड़ो में एक हिस्से पर बौद्ध स्तूप है। और उन्होंने बड़े बड़े अन्न भंडार भी बनाये थे और वो इसका अनाज रखने के लिये सही तरीके से उपयोग भी करते थे। यहाँ की सड़कें इतनी बड़ी हैं, कि सडक पर से दो बैलगाड़िया आसानी से जा सकती है, सड़क के दोनो तरफ घर हैं , एक खास बात ये है, कि यहाँ सड़क की तरफ सभी घरों की पीठ है और घरों के दरवाज़े का मुख्य भाग अंदर की गलियों की तरफ निकला है।
इन सभ्यता के लोग बहुत ही उच्च विचारों वाले थे क्यूँ की इतनी पुरानी सभ्यता होने के बावजूद उनकी वास्तुकला नगर नियोजन और स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत ही आधुनिक और विकसित स्वरूप की थी।
मोहनजोदाड़ो कृषि विकास - Mohenjodaro Agricultural Development
मोहनजोदाड़ो की खुदाई में खोजकर्तावो को ऐसे बहुत सारे सबूत मिले है की, यह सभ्यता की कृषि और पशु-पालन में भी बहुत रूचि थी, और ये एक कृषि-प्रधान सभ्यता भी रही होगी। इतिहास कार "इरफ़ान हबीब" के अनुसार मोहोंजोदाड़ो के लोग रबी की फसल करते थे इनमें गेहू, कपास, सरसों, चना इत्यादी का समावेश था इसके प्रमाण वहाके कई खुदाई में मिले है।
यहाँ तांबे से बनाये गये उपकरण खेती के लिए बनाये जाते थे, और माना जाता है कि, मोहोंजोदाड़ो में और भी कई प्रकार की खेती की जाती होंगी क्यूँ के खुदाई में लगभग सभी के बीज मिले है, और एक चौकाने वाली बात ये है की दुनिया में सूत के जो दो सबसे पुराने कपड़ों के नमूने मिले है उनमे से एक नमूना यहाँ मोहनजोदाड़ो में ही मिला है और खुदाई में यहाँ कपडो की रंगाई करने वाला एक कारखाना भी पाया गया है। और खेती का अनाज रखने के लिए बड़े बड़े अन्न भंडार भी बनाये गए थे।
मोहनजोदड़ो अंत का कारण - सिंधु घाटी की सभ्यता का अंत कैसे हुवा
सिंधु घाटी की सभ्यता का अंत कैसे हुवा ये अबतक रहस्य बना हुवा है, खुदाई में युद्ध के नामो निशान भी नहीं मिले है. और शोधकर्ता वैज्ञानिको को यहाँ पर रेडियेशन के प्रमाण मिले है इसके अनुसार इनके ख़त्म होने का कारण रेडियेशन फॉल आउट बताते है।
परन्तु इस सभ्यता के पतन का कारण आजतक सही प्रकार से पता नहीं चला है, और कुछ इतिहास कार और विचारवंत बहुत सारे अध्ययन के बाद दावा करते है की, सिंधु घाटी की सभ्यता के नाश होने का कारण महाभारत युद्ध है, क्यूँ के उस काल के दौरान महाभारत युद्ध इसी क्षेत्र में हुवा था, और महाभारत युद्ध में "ब्रहमास्त्र" का प्रयोग हुवा था जिसे आज के युग में परमाणु बम कहा जाता है।
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इससे जुड़ी घटना के कारण सिंधु घाटी की सभ्यता का नाश हुवा था और इसके प्रमाण भी महाभारत में दिखाई देते है। तो दोस्तों आपको इन सब के बारे मे क्या लगता है हमें ज़रूर बताये।