इस पोस्ट में हम स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, Swami Vivekananda biography in hindi और स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन के बारे में जानेंगे।
स्वामी विवेकानंद वेदांत और योग के भारतीय दर्शन की दुनिया में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे और 19 वीं शताब्दी के अंत में हिंदू धर्म को प्रमुख विश्व धर्म का दर्जा देने के लिए अंतःविषय जागरूकता बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है।
स्वामी विवेकानंद किशोरावस्था में ही वह रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बन गए और रामकृष्ण के संदेश को सभी तक फैलाने के लिए रामकृष्ण मिशन की शुरुआत की। दुनिया में रामकृष्ण मिशन की कई शाखाएँ हैं और दुनिया में, स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन को "युवा दिवस" के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद का बचपन
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को (मकर संक्रांति संवत 1920 के अनुसार) कलकत्ता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम वीरेश्वर था, लेकिन उनका औपचारिक नाम "नरेंद्रनाथ दत्त" था।
स्वामी विवेकानंद के पिता "विश्वनाथ दत्त" कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। स्वामी विवेकानंद के दादा "दुर्गाचरण दत्ता" संस्कृत और फारसी के विद्वान थे उन्होंने अपने परिवार को 25 की उम्र में छोड़ दिया और एक साधु बन गए। और उनकी माता "भुवनेश्वरी देवी" बड़े धार्मिक विचारों की महिला थीं। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यस्त होता था।
नरेंद्र याने स्वामी विवेकानंद के पिता और उनकी माता के धार्मिक, प्रगतिशील व तर्कसंगत रवैया ने उनकी सोच और व्यक्तित्व में काफी मदद की।
स्वामी विवेकानंद प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
बचपन से ही नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद) बहुतही कुशाग्र बुद्धि के थे और बहुत नटखट भी थे। अपने साथी दोस्तों के साथ वे खूब शरारत करते थे। उनके घर पर हररोज में नियमपूर्वक पूजा पाठ होती थी, धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण उनकी माता भुवनेश्वरी देवी को ग्रन्थ-पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने की बहुत रूचि थी। इनसे स्वामी विवेकानंद के सोच, व्यक्तित्व और विचारो में बचपन से ही सकरात्मता निर्माण हुई थी।
सन् 1871 में, आठ साल की उम्र में, नरेंद्रनाथ ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया जहाँ वे स्कूल गए। 1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया। 1879 में, कलकत्ता में अपने परिवार की वापसी के बाद, वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किये।
नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद) ने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेंबली इंस्टिटूशन (अब वह स्कॉटिश चर्च कॉलेज है) में किया। 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी कर ली।
विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व और यात्रा
२५ वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए थे। उस दरम्यान उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। विवेकानंद ने 31 मई 1893 को अपनी यात्रा शुरू की और जापान के कई शहरों नागासाकी, कोबे, योकोहामा, ओसाका, क्योटो और टोक्यो समेत कई शहरों का दौरा किया,
चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो पहुँचे सन् 1893 में शिकागो (अमरीका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो, अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया।
विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया। सैकड़ों सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया तब वह अपने भाषण के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जो कि उन शब्दों के साथ शुरू हुआ - "मेरे अमरीकी बहनों और भाइयों!"
स्वामी विवेकानंद के मुख्य कार्य
विवेकानंद भारत में हिंदू धर्म के पुनरुत्थान में एक प्रमुख शक्ति थे और औपनिवेशिक भारत में राष्ट्रवाद की अवधारणा में योगदान दिया। विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
अमरीका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएँ स्थापित कीं। अनेक अमरीकी विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। वे सदा अपने को 'गरीबों का सेवक' कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशान्तरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया।
स्वामी विवेकानंद का पूरा जीवन का परिचय यह बताता है कि, उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक अनेक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। और भारत और पुरे विश्व में स्वामी विवेकानंद को एक देशभक्त संन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को "राष्ट्रीय युवा दिवस" के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु - Swami Vivekananda Death
स्वामी विवेकानंद के शिष्यों के अनुसार, जीवन के अन्तिम दिन 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की रोज की दिनचर्या को नहीं बदला इस दौरान सुबह दो तीन घण्टे ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर चन्दन की चिता पर अंतिम संस्कार किया गया। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था।
उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मन्दिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की। और उनके बहुमूल्य विचारो का प्रचार और प्रसार किया।
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