महान खगोल शास्त्रीय और गणितज्ञ आर्यभट्‍ट | History of Aryabhatta In Hindi

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History and Biography of Aryabhatta In Hindi: आज हम जानेंगे प्राचीन काल के सबसे महान खगोल शास्त्रीय और गणितज्ञ "आर्यभट्‍ट" के बारे में, आर्यभट्‍ट ने शून्य की खोज और कई शोध और एक गणित की पुस्तक लिखी जिसका नाम "आर्यभटिया" है।

आर्यभटिया में अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्म काल शक संवत् 398 (476) लिखा है, परंतु उनके जन्मस्थान पर बहुत विद्वानों में मतभेद है। आर्यभट का भारत और विश्व के गणित और ज्योतिष सिद्धांत पर गहरा प्रभाव रहा है। तो दोस्तों आज हम आर्यभट्‍ट के जीवन, खोज और कार्य के बारे में सविस्तर रूप से जानेंगे।

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History Biography of Aryabhatta In Hindi - आर्यभट के बारे में जानकारी

हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है, इसी कारण रात और दिन होते हैं। यह सिद्धांत मध्यकाल में ‘निकोलस कॉपरनिकस’ ने रखा था, पर कॉपरनिकस से लगभग 1 हज़ार साल पहले ही आर्यभट्ट ने यह खोज की थी कि पृथ्वी गोल है और आर्यभट्ट कि गणना के अनुसार पृथ्वी का परिधि 39,968.0583 किलोमीटर है, जो की वास्तविक गणना 40,075.0167 किलोमीटर से केवल 0.2 % कम है।

आर्यभट्‍ट ये भी जानते थे कि चंद्रमा और दूसरे ग्रह सूर्य की किरणों से प्रकाशमान होते हैं। एक वर्ष में 366 दिन नहीं बल्की 365.2951 दिन होते हैं यह आर्यभट्ट ने अपने सूत्रों से सिद्ध किया। उन्होंने लगभग डेढ़ हजार साल पहले ही ज्योतिषशास्त्र की खोज की थी।

भारतीय गणितज्ञों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले आर्यभट ने 120 आर्याछंदों में ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांत और उससे संबंधित गणित को सूत्र रूप में अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘आर्यभटीय’ में वर्णन किया है।

आर्यभट्ट इस महान गणितज्ञ ने अनेक ग्रंथों की रचना जैसे की आर्यभटिय, दशगीतिका, तंत्र और आर्यभट्ट सिद्धांत और इसी ग्रंथो से हमे उनके कार्यों की पूरी जानकारी मिलती है। परंतु ‘आर्यभट्ट सिद्धांत’ इस ग्रन्थ के बारे में बहुत विद्वानों मे मतभेद है।

ऐसा माना जाता है कि ‘आर्यभट्ट सिद्धांत’ के केवल 34 श्लोक ही उपलब्ध हैं और इसका सातवीं सदी में बहुत उपयोग होता था। इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त हो गया पर ये ग्रन्थ कैसे लुप्त हो गया इसकी कोई भी निश्चित जानकारी नहीं है। और उन्होंने गणित के क्षेत्र में महान आर्किमिडीज़ से भी अधिक सटीक ‘पाई’ के मान को निरूपित किया और उन्होंने शून्य की खोज की जो गणित की सर्वश्रेष्ठ खोज है।

आर्यभटीय एक विशेष योगदान - आर्यभट्ट का गणित में योगदान

"आर्यभटीय" इस रचना में उनके द्वारा किये गए कार्यों का प्रत्यक्ष विवरण प्रदान किया गया है। माना जाता है की इसका यह नाम स्वयं आर्यभट्ट ने नही बल्कि उनके बाद के टिप्पणीकारों ने आर्यभटीय यह नाम दिया होगा।

"भास्कर प्रथम" जो आर्यभट्ट के शिष्य थे इन्होंने इसका उल्लेख अपने लेखों में किया है और वे इस रचना को अश्मक-तंत्र (Treatise from the Ashmaka) कहते थे। इस ग्रन्थ को कभी कभी "आर्य-शत-अष्ट" के नाम से भी जाना जाता है। आर्य-शत-अष्ट अर्थात आर्यभट्ट के 108 जो की उनके पाठ में छंदों कि संख्या है।

आर्यभटीय इस रचना में वर्गमूल, घनमूल, समांतर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का विस्तृत वर्णन किया गया है। वास्तव में देखा जाये तो यह ग्रन्थ गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है।

आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंक गणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं। और तो और इसमे सतत भिन्न (Continued Fractions), द्विघात समीकरण (Quadratic Equations), घात श्रृंखला के योग (Sums of Power Series) और ज्याओं की एक तालिका (Table of Sines) भी शामिल हैं।

आर्यभटीय में कुल 108 छंद और साथ ही परिचयात्मक 13 अतिरिक्त हैं और यह चार अध्यायों में विभाजित किया है। 

  • गीतिकपाद (13छंद)
  • गणितपाद (33छंद)
  • कालक्रियापाद (25छंद)
  • गोलपाद (50छंद)

माना जाता है की उनके द्वारा कृत एक तीसरा ग्रन्थ भी उपलब्ध है पर यह मूल रूप में मौजूद नहीं है बल्कि अरबी अनुवाद के रूप में अस्तित्व में है "अल न्त्फ़ या अल नन्फ़"। यह ग्रन्थ आर्यभट्ट के ग्रन्थ का एक अनुवाद के रूप में है ये दावा बहुत से विद्वान करते है, परन्तु इसका वास्तविक संस्कृत नाम किसी को ज्ञात नहीं है। यह फारसी विद्वान और इतिहासकार "अबू रेहान अल-बिरूनी" द्वारा उल्लेखित किया गया है।

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तो दोस्तों ये थी सबसे महान खगोल शास्त्रीय और गणितज्ञ आर्यभट्‍ट के बारे में कुछ विशेष जानकारी, आपको ये जानकारी अच्छी लगी तो हमें कमेन्ट कर के बताये, और यह आर्टिकल अपने दोस्तों में शेअर करे।

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